मधुरिम वेला भोर की - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

मधुरिम वेला भोर की, हो सबका कल्याण। 
सुख वैभव आरोग्यता, सभी दुखों से त्राण।।१।।

निर्मल शीतल नव किरण, भरे मनुज उत्साह।
मति विवेक से सम्बलित, संकल्पित पथ चाह।।२।।

उषा काल नव प्रेरणा, करे मनुज आगाह । 
भरे जोश संघर्ष पथ, सदा बने हम राह।।३।।

नया सबेरा मांगलिक, नव जीवन संचार।
लोभ क्रोध माया विमुख, हो मानव अवतार।।४।।

नव प्रभात की अरुणिमा, स्वच्छ विमल आकाश। 
प्रीति बढ़े निज राष्ट्र  में, घर घर ज्ञान प्रकाश।।५।।

सब पर हो सद्गुरु कृपा,  हो जीवन आनन्द। 
सदाचार पथ सारथी, महके मन मकरन्द।।६।।

लखि निकुंज अरुणिम छटा, हर्षित भाव विभोर।
राष्ट्र भक्ति परहित मना, हो खुशियाँ   चहुँ ओर।।७।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos