अम्मा कहो! - कविता - ऋचा सिंह

अम्मा कहो! - कविता - ऋचा सिंह | Hindi Kavita - Amma Kaho!. Hindi Poem on Mother | माँ पर कविता
जिसने बैठाई तुरपाई हर टूटे रिश्ते में
झुककर बात बनाई घिसते छूटे रिश्तों में,
अम्मा कहो! कैसे इतना धीर दिखाया? 
कैसे ऐसा किरदार बनाया?
सिरहाने पड़ी किताबें याद है
अक्सर पुकारा करती
पड़ी डिग्रियाँ भी तो शोर मचाया करती,
अम्मा कहो! कैसे न करवट तुमने बदला?
सपने छोड़ अपने तुमने
कैसे मुझे गोद में रखा?
कहती थी मेरी झूठी अम्मा
चाय न भाती है अब
चाय काटकर हिस्से की
गिलास भर दूध देती थी जब,
कहती थी अक्सर वो सबसे
बाबा और मैं बस दुनिया है
अम्मा अहो! 
बस सच कहो,
औरों की कड़वी बातों पर
कितने पल्लू भीगे हैं
कैसे भला परसो के आँचल अभी तक गीले हैं?
वो कहती है परिवार यही
न मायका याद आता कोई,
घंटों रसोई में पानी नहीं पूछा किसी ने जब
अम्मा कहो! नानी कितनी बार याद आई है तब?


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