पढ़ पाते बनावटी किसके चेहरे?
दिखते कभी बारह- बजते चेहरे,
कभी हसीं वादियों से खिले चेहरे।
भलेमानस में धूर्तता के छुपे चेहरे
पहचानना मुश्किल निष्कपट चेहरे।
संगी साथियों के बीच कपटी चेहरे,
गरीब बेबस इंसा के जज्बाती चेहरे।
समझ से बाहर फितरत भरी चेहरे,
धूंधले आईने -सा परत चढ़े चेहरे ।
खुली आँखों से भी न पढ़ पाते चेहरे,
राजनीतिक विसात से जो भरे चेहरे।
जो पढ़ें हैं अक्सर दार्शनिक किताबें,
पूछो पढ़े हैं वो कितने इंसानी चेहरे?
समुंद्र-सी गहराई लिए गंभीर चेहरे,
आसमां-सा विराटता समेटे चेहरे।
गम की धूप में भी मुस्कुराते चेहरे,
दर्द छुपाए संजीदगी से सजे चेहरे।
कभी साधु संत-सा सज्जन चेहरे,
कभी राक्षसी सोच-सा दुर्जन चेहरे।
कभी हाले-दिल देख पढ़ लेते चेहरे,
कभी मनोस्थिति भांप उखरे चेहरे।
सच वो नहीं जो हमें दिखाई देता,
चेहरे पर चेहरे पढ़ें किसके चेहरे।
सुनीता रानी राठौर - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)