इक मुलाक़ात की - ग़ज़ल - रेणु त्रिवेदी मिश्रा

तुम्हारी मेरी  इक मुलाक़ात की
चलो बात करते हैं उस रात की

बड़ी बेखबर थी नहीं थी ख़बर
न हालात की और न जज़्बात की

बरसती रही थी मुसलसल घटा
निगाहों ने कैसी ये बरसात की

मेरी जान लेकर ही जाएगी अब
उदासी तुम्हारी ये दिन -रात की

तवज्जो ज़रा भी न मैंने दिया
कभी बात उट्ठी जो बेबात की। 

सलामे-मुहब्बत है उस शख्स को,
कि जिसने भी इसकी शुरुआत की।

चलो आप इनआम दे तो गए,
मुझे कब से ख्वाहिश थी सौगात की।

रेणु त्रिवेदी मिश्रा - राँची (झारखंड)

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