गोपिन करत ठिठोली रे।
राधा रानी सो रास रचावत,
हिया करत मोरा चोरी रे।।
गैया चरावत वंशी बजावत,
सबकर दिल हरसावत रे।
प्रेम के धुन के सुना-सुना के,
हिय में प्रेम जगावत रे।।
गोपिन के तूँ बसन चुरावत,
सबका नाच नचावत रे।
द्रोपदी के चीर बढ़ा के,
नारी के लाज बचावत रे।।
करके बध मामा कंश के,
धर्म धरा पर लावत रे।
कर्म के राह बतावे खातिर,
गीता उपदेश सुनावत रे।।
रथ हाँकत बन सारथि भइया,
सत्य के जीत करावत रे।
दुष्टन पापिन के अन्त करैै के,
महाभारत करवावत रे
बजरंगी लाल - डीहपुर, दीदारगंज, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)