माँ-पिता - कविता - कपिलदेव आर्य

वो कहते हैं कि मेरे चेहरे पर तेज़ भरपूर है,
और मैं कहता हूँ, मेरे माता-पिता का नूर है!

उन्हीं की दुआओं से चमकते हैं सितारे मेरे,
वरना मुझ नाचीज़ को कहां इतना शऊर है?

माता-पिता से बढ़कर कुछ हो नहीं सकता,
ख़ुदा भी इनकी नेकियों के आगे कमज़ोर है!

और अगर मैं चाहूँ तो भी हार सकता नहीं,
क्योंकि मेरे माँ-बाप की रहमतों का ज़ोर है!

सो जाता हूँ मैं आज भी उनके आंचल तले,
ख़ुद ही गुज़र जाता है, मुसीबतों का दौर है!

माता-पिता औलाद को कभी बद्दुआ देते नहीं,
जिस दिन वो रो दिये, समझना तेरा कसूर है!

कभी अपने माता-पिता का दिल दुखाना मत,
क्योंकि इनके सदके हमारी हस्तियां मशहूर हैं!

कपिलदेव आर्य - मण्डावा कस्बा, झुंझणूं (राजस्थान)

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