चिंता का हल ऐसे करें - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

यूँ तो चिंता एक मानवीय गुण है यह ऐसा संवेग है जिससे होकर हर मनुष्य को गुजरना ही पड़ता है, किसी को ज्यादा तो किसी को कम।
अब यह व्यक्ति की मनोभावों पर, उसकी भावुकता पर भी निर्भर करता है कि वह कितना संवेदनशील है, किसी भी पहलू को कितनी संजीदगी से लेता है।

जब व्यक्ति का मन चिंताग्रस्त होता है तो उसके जेहन मे कई सवाल उठते हैं कि चिंताओं का सामना कैसे  करूँ? आप क्या क्या कर सकते हैं अपनी चिंता निवारण के लिए आइये पढ़ते है।

कभी-कभी चिंता करना जरूरी भी होता है और सही भी होता है,
मगर जरूरत से ज्यादा चिंता तो चिता के समान है।
जीवन की सच्चाई यही है कि हम संकटो से भरे जीवन को जीते हैं ऐसा हर किसी के साथ होता है किसी के साथ थोड़ा ज्यादा तो किसी के साथ थोड़ा कम।

चिंताओं का सामना करना मुश्किल लगता है। चिंता तो बच्चे व बड़े दोनो को ही होती है बस उनकी चिंताओं के कारण मे भिन्नता होती है।
चिंता करने से हमेशा नुकसान ही नही होता।
जब कोई अपनों के लिए चिंता करता है, कि वे खुश रहें, तो उसका चिंता करना सही होता है। यह भी ध्यान रखिये कि चिंता होने से व्यक्ति सही काम भी कर सकता है।
कुछ हद तक आप चिंता करने से खतरे मे पड़ने से बच जाते हैं।
यदि आप किसी गलत राह पर चल पड़े हैं और आपका विवेक आपको चेतावनी दे रहा है कि आपको कुछ बदलाव की जरूरत है तो यह चिंता करना भी गलत नही होगा।
अतः जब चिंता करने से आप सही काम करते हैं तो यह चिंता फायदे मन्द ही होगी।
हाँ तब मनोचिकित्सक की राय लेना ही उचित हो जाता है जब चिंताये पहाड़ जैसी लगने लगे।
यदि चिन्ता करने से आप और अधिक सही काम करते हैं तो यह चिंता फायदेमंद होगी, लेकिन अगर आप इस हद तक चिंता करते हैं कि आप ठीक से सोच ही नहीं पाते मानो आप किसी भूल भुलैया में फस गए हो, तो क्या ऐसी चिंता सही रहेगी? 
इस तरह की चिंता से कोई हल नहीं निकलेगा और यह आपकी एक नई परेशानी को जन्म देगी। अतः जिस हालात पर आपका जोर नहीं उसी में जीना सीखिए। कभी-कभी ऐसा होता है कि आप अपने हालात नहीं बदल सकते, लेकिन उनके बारे में आप अपनी सोच जरूर बदल सकते हैं। जरूरत है तो बस अपने हालात को सही नजर से परखने की।

चिंता दूर से करने के लिए परमेश्वर से अपने मन की बात कहें। चिंता में प्रार्थना करने से काफी मदद मिलती है।खासकर बोल बोल कर प्रार्थना करने से,
इससे काफी लाभ मिलेगा। इससे अंदर ही अंदर घुटने की बजाय इंसान अपनी परेशानी शब्दों में बयान कर पाता है जिससे उसके अंदर एक आत्मविश्वास उत्पन्न होता है, जो उसके मनोबल को जागृत करता है, बढ़ाता है।
गीता में लिखा है कि सारी चिंताओं का बोझ परमेश्वर पर डाल दो उसे तुम्हारी परवाह है।
प्रार्थना करने का यह मतलब नहीं कि इस दौरान आप किसी समस्या के बारे में सोचते हैं और आपको खुद ही उसका हल मिल जाए।
प्रार्थना असल में परमेश्वर से इंसान की बातचीत को ही कहा गया है, जिसे फरियाद भी कहते हैं।
अंतरात्मा में बसा परमात्मा जवाब देता है हिम्मत बढ़ाकर कहता है घबरा मत क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूँ, मैं तेरी हिम्मत बनूँगा, तेरी मदद करूँगा। यह आवाज ईश्वर से प्रार्थना करने में व्यक्ति की अंतरात्मा को अवश्य सुनाई देती है।
तभी उसे मनोबल मिल जाता है, शांत भी मिलना शुरू हो जाती है।
इसके अलावा घोर समस्या के वक्त या छोटी मोटी चिंता के वक्त भी आप को अपने मम्मी पापा, दोस्त  या जीवनसाथी से भी बात करनी चाहिए जिससे आपकी चिंताएं कम हो जाए। हो सकता है आपकी समस्या का हल उनके द्वारा निकल आये।

मैं समझती हूँ की प्रार्थना के साथ अपनी परेशानी की बात साझा करना या फिर हालात के साथ खुद की सोच को बदल लेना भी चिंता से निजात दिलाने में कारगर है।
हाँ अगर बहुत ज्यादा चिंता है छोटी-छोटी समस्याएं भी पहाड़ जैसी लगने लगी हो तो मनोचिकित्सक को दिखाना ही उचित रहता है और जरूरी भी।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

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