मादकता का सृजन करते हो।
रंग बिरंगी दुनिया में
सपनों के उपवन तुम सजाते हो।
कभी तुम सभी के
हृदय की शोभा बनते हो
तो कभी तुम भगवान के
चरणों में शीश नवाते हो।
प्रकृति के अजब निराली में
फूल तुम भी ग़ज़ब दिखते हो।
इस धरती की भवन में
महकता फैला कर,
तुम भी कमाल करते हो।
समझ कर सभी को बराबर,
सजे हो तुम मंदिर मस्जिद में।
यह सिख तुम सभी को देते हो,
कांटो में खेल कर
मुस्कुराते हो तुम,
न बैर तुम किसी से रखते हो।
मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)