बुद्ध पूर्णिमा - कविता - रतन कुमार अगरवाला 'आवाज़'

भगवान विष्णु के नवें अवतार, दिव्य शक्ति के आधार,
संसार को किया था प्रकाशमय, बुद्ध थे ज्ञान के भंडार।
वैशाख माह की पूर्णिमा, मनाते इस दिन बुद्ध पूर्णिमा,
धरा हो गई पवित्र पावन, संस्कारों की बढ़ गई महिमा।

माँ इनकी थी महामाया, पिता थे शाक्य राजा शुद्धोधन,
बचपन से ही उनके लाडले थे, नाम था सिद्धार्थ गौतम।
त्याग कर महल रातों-रात, सत्य की खोज में पड़े निकल,
बदल गया सिद्धार्थ का मन, आर्तनाद सुन वे हुए विकल।

बैठ गए वृक्ष तले, की उन्होंने वर्षों तक तपस्या गहन,
मानव मूल्यों के हर पहलु का, किया उन्होंने गहरा मनन।
आओ आज सब मिलकर, करें बुद्ध का मन से ध्यान,
मिलकर सब करें पुरुषार्थ, रचें नए सतजुग का प्रतिमान।

गूँज उठे पूरे ब्रह्माण्ड में, गौतम बुद्ध की महान वाणी,
चलो बताएँ घर-घर जाकर, गौतम बुद्ध की अमर कहानी।
यशोधरा थी उनकी ताक़त, जिसके सहारे था निर्वाण यज्ञ,
यशोधरा न होती तो, कैसे मिलता उन्हें बुद्ध का लक्ष्य?

एक ने की धर्म की प्रतिष्ठा, दूसरी ने की धर्म की रक्षा,
पूरा हो गया निर्वाण यज्ञ, पूरी हुई यशोधरा की प्रतीक्षा।
“बुद्धम् शरणम् गच्छामि”, फैला दें जग में यह सन्देश,
बुद्ध की राह पर चलकर, बने विश्वगुरु मेरा भारत देश।

संस्कारों का आज हो रहा हनन, हे बुद्ध! लौट आओ,
पापों का करो विनाश धरा से, नवचेतना का दीप जलाओ।
गाँव-गाँव, शहर-शहर, जन्म ले हर घर एक बुद्ध,
मिटे लोभ, मोह, माया, संस्कारों से हो जन-जन समृद्ध।


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