गोधूलि - कविता - राजीव कुमार

ढलती शाम
चिड़ियों का
घोंसलों की
तरफ लौटना ।

डूबता हुआ सूरज
पड़ती लाल किरण
नदी का रक्ताभ पानी 
लंगर मे हिलाती नाव ।

किनारे से चढ़ती 
भैसों की झुण्डे
उड़ती हुई धूल 
दूर घरों से उठता
बेताल सा धुँआ।

नदी की ओर बढ़ता
गाजे-बाजे का स्वर
ठिठक कर उस ओर
कातर भाव से देखती
अस्सी वर्ष के दंपत्ति।

जोर से एक-दूसरे का 
हाथ पकड़कर देखते 
मानों यह कह रहे थे
आ गई अब गोधूलि।

राजीव कुमार - जगदंबा नगर, बेतिया (बिहार)

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