संदेश
मेरा दुःख मेरा दीपक है - कविता - गोलेन्द्र पटेल
जब मैं अपने माँ के गर्भ में था वह ढोती रही ईंट जब मेरा जन्म हुआ वह ढोती रही ईंट जब मैं दुधमुँहा शिशु था वह अपनी पीठ पर मुझे और सर पर …
यायावर - कविता - संजय राजभर 'समित'
मैं आत्मा हूँ एक यायावार हूँ चल रहा हूँ अनंत काल से अनंत काल तक। न कभी थकता हूँ न कभी रूकता हूँ, न किसी का न कोई मेरा इंतज़ार करता…
जीवन पथ पर - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
खिली अरुणिमा सुप्रभात लोक, बढ़ चलो मनुज जीवन पथ पर। वर्तमान के पौरुष काग़ज़, लिख दे भविष्य नव स्वर्णाक्षर। चहुँ दिशा दशा सतरंग किरण,…
प्रेम का इंतज़ार - कविता - प्रेम ठक्कर
सुनो दिकु! कुछ इम्तिहान और लगेंगे तुम तक मेरी बात पहुँचाने के लिए पर एक दिन वो वक़्त ज़रूर आएगा। तय करना है सफ़र मिलों दूर का अभी, मेरा प…
लक्ष्यभेद अब करना होगा - कविता - राघवेंद्र सिंह
जीवन के इस महासमर में, तुझको न अब डरना होगा। अर्जुन की ही भाँति तुझे भी, लक्ष्यभेद अब करना होगा। इस शूलित पथ पर तुझको ही, शकुनी-सा छल …
आओ! शहरों में गाँव ढूँढ़ते हैं - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
आरूढ़ वांछा के रथ पर कंक्रीट के भीड़ भरे पथ पर हो विह्वल आतप से, छाँव ढूँढ़ते हैं आओ! शहरों में गाँव ढूँढ़ते हैं। अय्यारी के चक्रवात से चत…
मौसम का स्वभाव - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
दिन भी अपनी रातें जैसे करता है रंगीन। आँधी ने है बहुत पेड़ों का ख़ून किया। हमने धीरे-धीरे खिलता प्रसून किया॥ भँवरों के हाँथों बाग़ों में…
ये बगिया धोखा खा बैठी - गीत - सुधीर सिंह 'सुधीरा'
शाख़-शाख़ पे उल्लू बैठा, जड़ को दीमक खा बैठी। माली निकला बेपरवाह, ये बगिया धोखा खा बैठी। खिला हुआ गुलशन था देखो अब ये उल्लिस्तान बना, कोय…
और चाहिए क्या मुझे? - कविता - राजेश 'राज'
अपने ही साथ से अपनी सौग़ात से अटूट विश्वास से प्रेम की सुवास से निभाइएगा मुझे? और चाहिए क्या मुझे? एक आवाज़ पर एक ही साज पर एक ही चाह…
जीवन संगीत है - गीत - जयप्रकाश 'जय बाबू'
जीवन संगीत है गुनगुनाना तुम, बीत रहा हर पल मुस्कुराना तुम। लेकर फूलों से ख़ुशबू अपना तन मन महकाना, लेकर पवन से ताज़गी हरदम खिल-खिल …
दामाद की ससुराल कथा - कविता - विजय कुमार सिन्हा
ससुराल में सासू माँ का प्यारा होता है दामाद। दामाद जो पहुँच जाए ससुराल घर के सारे लग जाते ख़ातिरदारी में। दामाद था बातों की जादूगर अ…
श्री काशी विश्वनाथ धाम - गीत - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
शंकर के त्रिशूल पर बसी, हे काशी, हो तुम कितने पावन धाम। 2 भोले बाबा जहाॅं स्वयं स्थापित कर, बनाए ज्योतिर्लिंग श्री काशी विश्वनाथ धाम। …
पर्यावरण - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
पर्यावरण है प्रकृति का आखर, सूरज, चंदा, धरती और बादर। प्रकृति का अद्भुत चहुँदिशि घेरा, चंदा डूबा फिर हुआ सवेरा। कौन इन सबसे अनजाना होग…
सुलगते जा रहे हैं - कविता - ऊर्मि शर्मा
हर सीढ़ी पर जाति पूछते हो क्यों? सभी को एक रख हर-सदी में सफलता श्रेष्ठता की सीढ़ीयों पे चढ़ना है मगर! त्रासद सत्य यह है कि हम बहुम…
तेरी आँखों में - गीत - गणेश दत्त जोशी
तेरी आँखों में सजा रखा है मैंने ख़्वाबों का संसार। अब तू चाहे बहा दें मुझे आँसुओ में, या लगा दे पार। तेरी आँखों में... मेरी हर बात तुझस…
मैं प्रकृति प्रेमी - कविता - रूशदा नाज़
मैं प्रकृति प्रेमी वो मेरी हमसाथी। मैं उदास हूँ, वो भी उदास हो जाती, मैं निराश हूँ, वो भी अश्क बहाती। उमड़ते-घुमड़ते बादल मेरे दु:खो क…
मैं बुनकर मज़दूर - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
मैं बुनकर मज़दूर हुनर मेरा लूम चलाना। मेरी कोई उम्र नहीं है... मैं एक नन्हा बच्चा भी हो सकता हूँ जहाँ मेरे नन्हे हाथों में किताब होनी च…
वसन्त का कैलेण्डर - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
दो तारीख़ों के बीच बीतते हैं जो युग उनका फ़ासला भी दीवार पर टँगा कैलेण्डर दिनों में बताता है फिसल जाती हैं जो तारीख़ें हाथों से चिपकी रह …
बादल अंबर में घिर आए - ग़ज़ल - अविनाश ब्यौहार
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 बादल अंबर में घिर आए, मौसम बारिश के फिर आए। लोग यहांँ पर आतुर होंगे, वाजिब है गर…
प्रेमिका - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
जन्मों का वादा था, राह में ही वो छोड़ गई। था नाज़ुक सा हृदय मेरा, जिसको वो तोड़ गई। प्राण बसे है तुझमें मेरे, ऐसी बातें करती थी। हर …
क़ैदी - कविता - कोमल बैनिवाल 'साहित्या'
मैं वो क़ैदी हूँ, जिसने सलाख़ें नहीं देखी। मैं वो पापी हूँ, जिसने पाप नहीं किया। मैं वो आसमाँ हूँ, जो ज़मीं पर बसता हूँ। मैं वो आँसू हूँ,…
मज़दूर की दशा - कविता - रूशदा नाज़
एक पहर, गर्मियों के दिन तमतमाते धूप में दूर एक मज़दूर को भवन बनाते देखा, झूलसती लू में न कोई छाया रंग-बिरंगी पगड़ी को देखा, ढुलकते सीकर…
मंज़िल करे पुकार - गीत - प्रशान्त 'अरहत'
मंज़िल करे पुकार ओ राही! प्रतिपल कदम बढ़ाए चल। चलना तेरा काम वक़्त से हरदम हाथ मिलाए चल। जो भी सुखद-दुखद घटनाएँ उनको अभी भुलाए चल। जो भी…
नफ़रत का बम फोड़ा जाए - ग़ज़ल - रज्जन राजा
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 नफ़रत का बम फोड़ा जाए, अपनों को ना छोड़ा जाए। मग़रूरी ने तोड़े हैं दिल, अब इसको भ…
बढ़ती भूख - कविता - महेश कुमार हरियाणवी
अन्न के ही अन्नदानों भारती के खलिहानों, धरती पुकारती है बैठ मत जाइए। बोल रही सर पर महँगाई घर पर, लुट रही लाज आज फिर से बचाइए। जिनसे है…
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