जीवन के इस महासमर में,
तुझको न अब डरना होगा।
अर्जुन की ही भाँति तुझे भी,
लक्ष्यभेद अब करना होगा।
इस शूलित पथ पर तुझको ही,
शकुनी-सा छल कपट मिलेगा।
दुर्योधन-सा क्रोध सदा ही,
इंद्रप्रस्थ पर तुझे छलेगा।
किंतु तुझे इस जीवन रण में,
हुँकारित स्वर भरना होगा।
अर्जुन की ही भाँति तुझे भी,
लक्ष्यभेद अब करना होगा।
इस शूलित पथ पर तुझको ही,
परिस्थिति प्रतिकूल मिलेगी।
कहीं क्रूरता दुःशासन-सी,
बाधाओं की धूल मिलेगी।
किंतु तुझे दृढ़ निश्चय से ही,
गिरकर यहाँ उभरना होगा।
अर्जुन की ही भाँति तुझे भी,
लक्ष्यभेद अब करना होगा।
इस शूलित पथ पर तुझको ही,
हर क्षण एक उन्माद मिलेगा।
कुछ अपने कुछ यहाँ पराए,
जन से जन संवाद मिलेगा।
किंतु तुझे हर क्षण जीवन में,
संघर्षों से लड़ना होगा।
अर्जुन की ही भाँति तुझे भी,
लक्ष्यभेद अब करना होगा।
इस शूलित पथ पर तुझको ही,
चक्रव्यूह का द्वार मिलेगा।
लोभ, मोह, माया रूपी ही,
ज्वाला का उद्गार मिलेगा।
किंतु तुझे बनकर अभिमन्यु,
चक्रव्यूह को हरना होगा।
अर्जुन की ही भाँति तुझे भी
लक्ष्यभेद अब करना होगा।
राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)