सुनो दिकु!
कुछ इम्तिहान और लगेंगे तुम तक मेरी बात पहुँचाने के लिए
पर एक दिन वो वक़्त ज़रूर आएगा।
तय करना है सफ़र मिलों दूर का अभी,
मेरा परिश्रम तुम तक मुझे ज़रूर पहुँचाएगा।
लाख कोशिश कर ले ये कायनात तूफ़ानों में गिराने की,
यह विश्वास मिटेगा नहीं, ना ही थकेगा।
प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु को ज़रूर वापिस लाएगा।
प्रेम ठक्कर - सूरत (गुजरात)