दिन भी अपनी रातें
जैसे करता है रंगीन।
आँधी ने है बहुत
पेड़ों का ख़ून किया।
हमने धीरे-धीरे
खिलता प्रसून किया॥
भँवरों के हाँथों बाग़ों में
हुआ जुर्म संगीन।
मौसम का स्वभाव
कई बार बदलता है।
थका हुआ रवि जैसे
साँझ को ढलता है॥
बजा रहे हैं बन्धु-साथी
भैंस के आगे बीन।
अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)