आओ! शहरों में गाँव ढूँढ़ते हैं - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक

आरूढ़ वांछा के रथ पर
कंक्रीट के भीड़ भरे पथ पर
हो विह्वल आतप से, छाँव ढूँढ़ते हैं
आओ! शहरों में गाँव ढूँढ़ते हैं।

अय्यारी के चक्रवात से
चतुराई के भितरघात से
निष्ठा डोले बीच दह, नाँव ढूँढ़ते हैं
आओ! शहरों में गाँव ढूँढ़ते हैं।

अतिशयता की भगदड़ में
पदक्रम के अंधड़ में
टिके रहे जो भू पर, वो पाँव ढूँढ़ते हैं
आओ! शहरों में गाँव ढूँढ़ते हैं।

मैं-मेरे के विवादों में
सीमित होते संवादों में
पितरों तक भी दे संदेशा, (कव्वे की) वो काँव ढूँढ़ते हैं
आओ! शहरों में गाँव ढूँढ़ते हैं।


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