यायावर - कविता - संजय राजभर 'समित'

मैं आत्मा हूँ 
एक यायावार हूँ 
चल रहा हूँ 
अनंत काल से अनंत काल तक।

न कभी थकता हूँ
न कभी रूकता हूँ,
न किसी का 
न कोई मेरा
इंतज़ार करता है,
सब चल रहे हैं 
भटक रहे हैं। 

जल-थल-नभ नाप रहा हूँ 
मृत्युपरांत क्या है खोज रहा हूँ,
सूरज वहीं है 
चाँद, तारे, पहाड़, नदियाँ, सागर
सबके सब वहीं है,
बटोही आते हैं
फिर चले जाते हैं 
स्वरूप बदलकर 
फिर आना-जाना
अनेक योनियों से होता हुआ।

अग्नि ने जलाया 
पानी ने डुबाया 
हवाओं ने सोखा
भयंकर प्रलय देखा 
महाभारत देखा,
अनंत बार मृत्यु आया
पर कोई रोक न सका 
क्योंकि
मैं आत्मा हूँ 
एक यायावार हूँ। 


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