संदेश
हम हैं छोटे-छोटे बच्चे - कविता - राहुल भारद्वाज
हम हैं छोटे-छोटे बच्चे, त्यौहार हमें लगते हैं अच्छे। स्कूल में पड़ जाते हैं अवकाश, दिन होते हैं वो कितने ख़ास॥ पढ़ने की कोई चिंता नहीं,…
बरसो बदरा धरती प्यासी - कविता - अनूप अंबर
बरसो बदरा धरती प्यासी, देख कृषक की ज़रा उदासी। सब मंगलमय हो जाएगा, यदि गर्ज-गर्ज के तू गाएगा। अम्बर कृषक निहार रहा है, तुम्हें बारंबार …
मस्ताने मौसम ने - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मस्ताने मौसम ने पागल मुझे कर दिया, दीवाने मौसम ने घायल मुझे कर दिया। भीगा सावन बहकने लगा, गीला बदन क्यूँ दहकने लगा। दिल धक धक धक धड़कने…
शिव ही सत्य है - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
दुनियाँ शिव ही सत्य है, महिमा अपरंपार। अन्तर्मन विश्वास से, हों प्रसन्न ओंकार॥ सदा अजन्मा चिरन्तन, बाघम्बर वागीश। भक्ति प्रेममय शिव…
नदी की व्यथा - कविता - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'
शैलसुता में सरिता सुन्दर नागिन सी लहराती हूँ। दरिया खेत गॉंव वन सबको मैं जल पान कराती हूँ॥ मेरा जन्म पहाड़ों से, मैं मैदानों में आती …
वह ज़िंदा होगा - कविता - आनन्द कुमार 'आनन्दम्'
भला कैसे कोई समझें मेरे किरदार को जब हो रही हो इम्तिहान प्यार की वह बेज़ुबान बेगुनाह था भरी महफ़िल में जिसे स्वीकार था वह ज़िंदा होगा य…
रात में सूरज - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'
मरुस्थल की रात का लिहाफ़ हैं, उस पे शीतलता का पर्याय गुदड़ा भी बदन के नीचे साफ़ हैं, वो सामने, आँखों की सम्त पेशानी पर बल्ब जल रहा है, च…
आओ चलें गाँव की ओर - कविता - प्रिती दूबे
छोड़ के इन शहरों की शोर, आओ चले गाँव की ओर। कितना प्यारा अपना गाँव, कितना न्यारा अपना गाँव। जहाँ अपनापन है रचा, बसा, जहाँ कभी रोया कभी…
जीवन एक संघर्ष है - कविता - उमेन्द्र निराला
जीवन एक संघर्ष है और हम पथिक है उसके, राहें सरल नहीं है बाधाएँ हर पग है तो इससे डरना क्या? मुझे गिराने की चाहत में गिर रहें हैं ख़ुद, म…
एक सुबह होने दो मेरी स्मृति में - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
एक सुबह होने दो मेरी स्मृति में उगने दो रक्तिम आभा की तरह एक सुरज मेरे स्मृति के बंजर में मेरा सीना अनुपजाऊ ज़मीन है कट चुका जंगल, मरुस…
भौतिकवाद, प्रकृतिवाद और हमारी महत्वाकांक्षाएँ - लेख - श्याम नन्दन पाण्डेय
सुदूर गाँव और जंगलों मे बैठा कोई बुज़ुर्ग व्यक्ति और उसका परिवार जो खेती बाड़ी करता है, गाय, भैंस और बकरियाँ चराता है, हाथ मे स्मार्ट फ़ो…
चले चलो, बढ़े चलो - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
चले चलो, बढ़े चलो लड़ो कि बिना लड़े हक़ नहीं मिलता। उठो कि बिना चले मंज़िल नहीं मिलती। माँगों कि बिना माँगे कुछ नहीं मिलता। जागो कि बिना जा…
मातृभूमि - कविता - योगेंद्र पांडेय
फिर से ग़ुलामी की न, बेड़ियों में बाँध सके, भारत माँ पूर्ण, स्वाभिमान माँग रही है। सबके ज़बान पर, अंकित हो इतिहास, जन गण मन वाली, गान म…
प्रकृति का प्रेम - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
तिमिर फैले धरा पर जहाँ-जहाँ, स्नेह लौ से दीप जलाए जाते। खिलखिलाते यह धरा चहुँओर, प्रेम पुष्प के पौधे लगाए जाते। करुणा की इत्र महकते धर…
रिमझिम सावन आया है - ताटंक छंद - संजय राजभर 'समित'
विरह वेदना की ज्वाला में, तन-मन ख़ूब तपाया है। आओ मेरे प्रियतम प्यारे, रिमझिम सावन आया है। प्यासी घटा की मर्म समझो, गीत ख़ुशी के गाएँगे।…
मेरा देवता मौन है कई दिनों से - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
हे मन्दिर के पुजारी! नाराज़ तो हुए होंगे मुझसे कि नैवेद्य के समय चित में अर्पण नहीं था। हे सरसों, गुलाब, नर्गिस और डेज़ी के फूल! नाराज़ त…
बादल आओ - कविता - राजेश 'राज'
वर्षा की जलधार लिए वारि कणों की फुहार लिए श्यामल बादल आ जाओ अपना प्रेम उड़ेलो सब पर सब में जीवन भर जाओ श्यामल बादल आ जाओ। वृक्षों की त…
प्रेम - कविता - मुकेश वैष्णव
प्रेम में आश्वाशन मरणासन सी स्तिथि है, मेरी तरह न जाने कितनों की आपबीति है। आँखें मूँद के हर बार हिमाक़त कर लेना, समाज में बाल विवाह के…
देखो-देखो सावन है आया - कविता - सुनील कुमार महला
झम-झम बरसे मेघ, तरूओं के भीगे तन, भीगे हरेक आज मन देखो-देखो सावन है आया! चम-चम चमके बिजलियाँ, झूम रहे तन और झूम रही सारी वनस्पतियाँ दे…
रामत्व - कविता - महेश कुमार हरियाणवी
कर्म: पावन नाम को पावन गाएँ, मिल-मिल कर सब ही दोहराएँ। कर्मों की जग करता पूजा, राम नाम हैं जीवन दूजा॥ प्रण: साथ के संगी छूट न जाएँ, …
देख सजनी देख ऊपर - गीत - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
देख सजनी देख ऊपर। इंजनों सी दड़दड़ाती, बम सरीखी गड़गड़ाती। रेल जैसी धड़धड़ाती, फुलझड़ी सी तड़तड़ाती॥ पल्लवों को खड़खड़ाती, पंछियों को …
तू लाजवाब है तो मैं भी लाजवाब हूँ - ग़ज़ल - भाऊराव महंत
अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन तक़ती : 221 2121 1221 212 तू लाजवाब है तो मैं भी लाजवाब हूँ, तुझमें शबाब है तो मैं आला-शबाब हूँ…
ज़रा सा क़यास लगा - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
देवशयनी एकादशी है चातुर्मास लगा। मंगल कार्य नहीं हो सकते। पर्यंक पे नहीं सो सकते॥ बेगैरत उनने माना हमको ख़ास लगा। अधिकारी की बल्ले-बल्ल…
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