तू लाजवाब है तो मैं भी लाजवाब हूँ - ग़ज़ल - भाऊराव महंत

अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
तक़ती : 221  2121  1221  212

तू लाजवाब है तो मैं भी लाजवाब हूँ,
तुझमें शबाब है तो मैं आला-शबाब हूँ।

तू एक बार ही नहीं हर बार किया कर,
मैं हर सवाल के लिए हाज़िर जवाब हूँ।

अच्छा जहाँ है तू वहॉं अच्छा रहा हूँ मैं,
तू है जहाँ ख़राब वहाँ मैं ख़राब हूँ।

मुझसे न फेर आँख को तू इस तरह हसीं,
महताब है अगर से तू, मैं आफ़ताब हूँ।

कोरी नहीं मगर न कोई राज़ है छुपा, 
पढ़ ले जहान खोल, खुली सी किताब हूँ।

क्या मायने हैं मौत के तू जान ले ज़रा,
रुस्तम की ज़िंदगी के लिए सोहराब हूँ।

मुस्कान की नदी को नहीं सूखने देता, 
ग़म भी मिले 'महंत' तो झेलम-चिनाब हूँ।

भाऊराव महंत - बालाघाट (मध्यप्रदेश)

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