छोड़ के इन शहरों की शोर,
आओ चले गाँव की ओर।
कितना प्यारा अपना गाँव,
कितना न्यारा अपना गाँव।
जहाँ अपनापन है रचा, बसा,
जहाँ कभी रोया कभी हँसा।
जहाँ नहीं ख़ुशियों का छोर,
आओ चले गाँव की ओर।
दोपहर में भी गाँव की गलियों में घूमना,
डाँट पड़ने पर माँ से रूठना।
फिर सब भूलकर मस्ती में झूमना,
लड़कपन के सपनो में आकाश को चूमना।
बचपन की वो सारी यादें
मन को देती हैं झकझोर,
आओ चले गाँव की ओर।
छोड़ के उन ख़ुशियों को शहर में आया,
शायद वो आनन्द फिर कभी न पाया।
कभी न आने वाला कल,
याद कर वो बीते पल।
दिल कहे दे देकर जोर,
आओ चले गाँव की ओर।
गाँव जाने की बाते सुन,
जैसे बजे हैं सितार की धुन।
मनवा नाचे है बनकर मोर,
आओ चले गाँव की ओर।
छोड़ के इन शहरों की शोर,
आओ चलें गाँव की ओर॥
प्रिती दूबे - भदोही (उत्तर प्रदेश)