हे मन्दिर के पुजारी!
नाराज़ तो हुए होंगे मुझसे
कि नैवेद्य के समय
चित में अर्पण नहीं था।
हे सरसों, गुलाब, नर्गिस और डेज़ी के फूल!
नाराज़ तो हुए होंगे मुझसे
कि वसन्त में
पतझड़ के गीत लिखे।
हे कोयल, मैना, बुलबुल और गौरैया!
नाराज़ तो हुए होंगे मुझसे
कि कलरव में
सन्नाटा देखा।
हे वीणा, बाँसुरी, ढोल और मजीरा
नाराज़ तो हुए होंगे मुझसे
कि नाद
बिन स्पन्दन के लौट गई।
हे वैरागी, ऋतुराज, नभचर और अनुनादी!
माफ़ करना मुझे
कि मेरा देवता (प्रिय)
मौन है कई दिनों से…
डॉ॰ नेत्रपाल मलिक - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)