ज़रा सा क़यास लगा - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

देवशयनी एकादशी है
चातुर्मास लगा।

मंगल कार्य
नहीं हो सकते।
पर्यंक पे
नहीं सो सकते॥

बेगैरत उनने माना
हमको ख़ास लगा।

अधिकारी की
बल्ले-बल्ले।
और हम पड़े
रहे निठल्ले॥

बात-बात पर रो देते
हमको हास लगा।

नैतिकता को
दाग़ लगा है।
सौतेला सा
आज सगा है॥

है क्या घटने वाला 
ज़रा सा क़यास लगा।


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