वर्षा की जलधार लिए
वारि कणों की फुहार लिए
श्यामल बादल आ जाओ
अपना प्रेम उड़ेलो सब पर
सब में जीवन भर जाओ
श्यामल बादल आ जाओ।
वृक्षों की तरुण फुनगियाँ
पर्वतों की धवल चोटियाँ
चूमने को ही सही तुम
उमड़ घुमड़ नीले गगन से
तीव्र वेग से आ जाओ
श्यामल बादल आ जाओ।
सरिताएँ मिलन को आकुल
लताएँ छुअन को व्याकुल
सघन छाया से ढको तुम
ये तुम्हारी ओर उन्मुख
अब गर्जना से बरस जाओ
श्यामल बादल आ जाओ।
मोर, पपीहा तुम्हें पुकारें
झींगुर दादुर तुम्हें निहारें
लेकर के जलकण असीमित
धरा का आँचल भिगो तुम
सबकी प्यास शांत कर जाओ
श्यामल बादल आ जाओ।
राजेश 'राज' - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)