रिमझिम सावन आया है - ताटंक छंद - संजय राजभर 'समित'

विरह वेदना की ज्वाला में,
तन-मन ख़ूब तपाया है।
आओ मेरे प्रियतम प्यारे,
रिमझिम सावन आया है।

प्यासी घटा की मर्म समझो,
गीत ख़ुशी के गाएँगे।
एक-दूजे में लीन होकर,
स्वरूप एक बनाएँगे।

आज धरा पर जल ही जल है,
जल ही नयन सुखाया है।
आओ मेरे प्रियतम प्यारे,
रिमझिम सावन आया है।

भोले बाबा के मंदिर में,
भीड़ उमड़ के आई है।
हरे रंग की पसरी चुनरी,
ओढ़ धरा शरमाई है।

उन्मुक्त मेघ गरज-गरज के,
सारी रात जगाया है।
आओ मेरे प्रियतम प्यारे,
रिमझिम सावन आया है।

नींद भरी मेरी आँखों में,
सुध-बुध खो बैठी हूँ मैं।
हृदय की सुवासित आँगन में,
तुझको ही पाती हूँ मैं।

कैसे कहूँ मैं और खुलकर,
सब बात 'समित' समझाया है।
आओ मेरे प्रियतम प्यारे,
रिमझिम सावन आया है।


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