एक सुबह होने दो मेरी स्मृति में - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति

एक सुबह होने दो मेरी स्मृति में
उगने दो रक्तिम आभा की तरह एक सुरज
मेरे स्मृति के बंजर में

मेरा सीना अनुपजाऊ ज़मीन है
कट चुका जंगल, मरुस्थल का विस्तार है
अपने नाखुन से मिट्टी कोड़ो
स्पर्श से हवा का रुख मोड़ो
बो दो हवा में सुख का बीज 
सीने पर प्रेमकुसुम खिलने दो
बूँदो से सींचो, धरती से मिलने दो।


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