देखो-देखो सावन है आया - कविता - सुनील कुमार महला

झम-झम बरसे मेघ,
तरूओं के भीगे तन, भीगे हरेक आज मन
देखो-देखो सावन है आया!

चम-चम चमके बिजलियाँ,
झूम रहे तन और झूम रही सारी वनस्पतियाँ
देखो-देखो सावन है आया!

नव ऊर्जा का हो रहा संचार,
मन प्रफुल्लित है, धुल रहे सारे विकार
देखो-देखो सावन है आया!

झर-झर झूमते झरने,
ख़ुश हैं पशु, ख़ुश हैं पंछी, ख़ुश हैं किसान, सावन के क्या है कहने
देखो-देखो सावन है आया!

हँसमुख है हरियाली,
पीहू-पीहू की ध्वनि गुंजित, चित्त चुराए चातक
देखो-देखो सावन है आया!

दादुर की है टर-टर चहुँओर,
ठंडी सिहरन उठ रही आज हरेक अंतर
देखो देखो सावन है आया!

कोयल की कुहू-कुहू,
पपीहे सुना रहे हैं राग, मन भावन पिय
देखो-देखो सावन है आया!

प्रेम रस प्रकृति आज घोल रही,
हृदय के झंकृत तारों में मिश्री सी घोल रही
देखो-देखो सावन है आया!

धरती दुल्हन सी सजी,
सुखदायक संगीत, गूंजे चहुँओर मधुर गीत
देखो-देखो सावन है आया!

मृदु पंखुड़ियाँ आज भींग रहीं,
सौंधी ख़ुशबू मिट्टी की
देखो-देखो सावन है आया!

चंचल चितवन,
महके हर बाग़ और उपवन
देखो-देखो सावन है आया!

सुनील कुमार महला - संगरिया, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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