बरसो बदरा धरती प्यासी,
देख कृषक की ज़रा उदासी।
सब मंगलमय हो जाएगा,
यदि गर्ज-गर्ज के तू गाएगा।
अम्बर कृषक निहार रहा है,
तुम्हें बारंबार पुकार रहा है।
आओ मेघ छा जाओ तुम,
घन घोर घटा बरसाओ तुम।
धरती की सारी पीड़ा हर लो,
इसको अपना शीतल जल दो।
तुम हो उपकारी जग जानता है,
इतना उपकार आज तुम कर दो।
व्याकुल है जन मानस सारा,
रवि के ताप में हो न गुज़ारा।
सम्पूर्ण प्रकृति कुम्हलानी सी है,
अब तो मेघा बस तेरा सहारा।
अनूप अम्बर - फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश)