जीवन एक संघर्ष है - कविता - उमेन्द्र निराला

जीवन एक संघर्ष है
और हम पथिक है उसके,
राहें सरल नहीं है
बाधाएँ हर पग है तो
इससे डरना क्या?
मुझे गिराने की चाहत में
गिर रहें हैं ख़ुद,
मुझे मिटाने की कोशिश बारी-बारी है।
यह सिलसिला जारी है तो
इससे डरना क्या?
नदियों मे लहरों का आना
अन्यत्र नहीं है,
पीड़ा देने की तैयारी है तो
इससे डरना क्या?
बताओ उन्हें दुख दर्द नया नहीं है
चोटें खाकर सम्भला हूँ तो
इससे डरना क्या?
इलाहबाद की गलियों में देखा
स्वप्न पूर्ण करने का उन्माद,
आर्थिक तंगी ने झकझोरा
निज स्वप्न को शिथिल किया तो
इससे डरना क्या?
बाधाएँ भी चट्टानी दृढ़ सी,
ग़ुरूर तोड़ूँगा अपने भुज बाल से,
मुझे हराने को तैयार है वो
दो चार हाथ हो जाए तो,
इससे डरना क्या?
कर मेहनत जताता क्यों है?
संघर्ष अपना बताता क्यों है?
लगा रह निरंतर तू
होंगी तुझमें लाखों कमियाँ तो,
इससे डरना क्या?
गूँज उठेंगी धरा गगन सी,
काँटों भरा इतिहास दोहराएँगी,
हिमालय की सिरा भी झुककर
तेरे डर का अंत करेंगी तो
इससे डरना क्या?

उमेन्द्र निराला - हिंनौती, सतना( मध्यप्रदेश)

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