संदेश
पर्व रक्षा बंधन का - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा'
"पर्व रक्षा बंधन का" प्रेम, स्नेह, सम्मान का पर्व है रक्षा बंधन का त्योहार। सनातन धर्म में सद्भावना पूर्वक मनाया जाता है यह …
रक्षा बंधन - कविता - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
रेशमी धागे से बना स्नेह का ये बंधन, राखी है भ्रातृ भगिनी का पावन बंधन। प्रेम पावित्रय का ये प्यारा सा सावन, कच्चे धागे से भ्रातृ भगिनी…
सावन - गीत - संगीता भोई
ओ मेरे प्रियतम मनभावन, याद है मुझे वो पहला सावन। वो भी क्या सावन के झूले थे, जब साथ में, हम तुम झूले थे। बस वो ख़ुशियों के मेले थे, जब …
चल क़दम मिला - कविता - जितेन्द्र कुमार 'सरकार'
चल क़दम मिला क़दम सारा हिन्दुस्तान, रंग रोंगन में रमता जा यह दिल की दास्तान। उठ जाग रे देख तु प्राणी रख सबका सम्मान, देश मेरे की रख तु ल…
रक्षा बंधन - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
कुछ रिश्तों की डोर कभी टूट न पाए भाई-बहन के रिश्ते में खटास कभी न आए छोटी-छोटी ग़लतियाँ जब भाई करता माँ-बाप के ग़ुस्से का पारा जब-जब च…
मन का कोरा पन्ना - कविता - राकेश कुशवाहा राही
बरसों से मन का कोरा पन्ना कोरा ही रह गया, शायद मोहब्बत को मेरा पता भूला ही रह गया। सुना है लिखने के लिए दर्द का होना ज़रूरी है, सोचकर य…
रक्षा बंधन - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
भैया रेशम के धागे का बंधन भूल न जाना, रक्षाबंधन के दिन भैया बहिन को नहीं भुलाना। घर में रहकर बचपन में हम कितनी धूम मचाते थे, मेरी चोटी…
दर्द बढ़ता सदा जताने से - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 दर्द बढ़ता सदा जताने से, है मुनाफ़ा उसे छिपाने से। क्यों सुनाएँ कथा-व्यथा अपनी, र…
भाव - कविता - डॉ॰ सरला सिंह 'स्निग्धा'
अब भाव एक मन में, सबके यही भरेंगे। यह देश है हमारा, सब लोग यह कहेंगे। यह कामना सभी की, ऊँचा रहे तिरंगा। नव रूप ले हमेशा, आगे सदा बढ़े…
वर्षा सुन्दरी - कविता - अनिल भूषण मिश्र
एक नार नवेली अलवेली, करके स्नान अभी-अभी वो आई है। रूप सौन्दर्य की छटा बिखेरती, सबके मन भाई है। घने केश काले उसके, नयन कजरारे हैं। बिजल…
भरोसा ख़ुद पर - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'
विश्वास का पौधा बोना चाहा, मिट्टी जो वफ़ादार नहीं, उग न पाया पारदर्शिता पानी से, सिखलाती निर्मल रहे पर, कुछ छद्म विभा के अनुकरणो से, मन…
विषय, विचार और कामनाओं से मुक्ति ही स्वतंत्रता है - लेख - आर॰ सी॰ यादव
नीतिगत निर्णय लेना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। यह एक ऐसी नैसर्गिक प्रतिभा जिसके बिना पर मनुष्य अपने गुण-अवगुण, यश-कीर्ति, हानि-लाभ और …
पैग़ाम दो - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
कोई कील बन सताए, हथौड़ा ठोक दो, बन कटार दुश्मन के सीने में भोंक दो। ये देश है वीर जवानों का मस्तानों का, है आग सीने में, दुश्मन को झों…
प्रेम में पगना - कविता - विनय विश्वा
तुम्हारा प्यार ही है जो ज़िंदा रखने की एक दवा है, नहीं तो कबका इस उबाऊ दुनिया से ऊब गए होते। ओ दिल्ली के नायक तुम्हें प्यार का अहसास …
शिव हैं भोले भंडारी - कविता - शालिनी तिवारी
शिव हैं आदि शिव हैं अनंत वो हैं भोले भंडारी, गले सर्प तन मृग छाला अविनाशी हैं डमरूधारी। जटा विराजत गंगा और माथे शोभित अर्धचंदा, गणप्रे…
यादों की बारात सजाऊँ - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
यादों की बारात सजाऊँ, बचपन फिर लम्हें जी पाऊँ। माता की ममता छाया तल, पा सुकून फिर से सो जाऊँ। बाबूजी भय से सो जाऊँ, किताब खोल स्वमन बह…
साथी मेरे - गीत - नृपेन्द्र शर्मा 'सागर'
साथी मेरे, हमदम मेरे, मैं साथ हूँ, हरदम तेरे। दिल में है तू, साँसों में तू, पलकों में हैं, सपने तेरे। साथी मेरे, हमदम मेरे। दुनिया है …
शिव मैं कुछ तुम जैसी हूँ - कविता - स्नेहा
शिव! मैं कुछ तुम जैसी हूँ... तुम भोले हो मैं भोली हूँ तुम ध्यानी हो मैं तुम्हारे ध्यान में ये सारा जग तुझमें बसता हैं और तू मुझमें ब…
मोहन - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
मोहन! मुरली से प्रीत तुम्हारी अगाध अनन्त हुई कैसे? प्रीत में पागल मीराबाई मन से सन्त हुई कैसे? राधा ने दुनियादारी त्यागी और तुम्ही को …
मेरा राम आएगा - कविता - ईशांत त्रिपाठी
गोस्वामी बाबा तुलसीदास जी पर कविता। चले मानस पढ़ै पढ़इया बड़न, लगे दोहा रटै रटइया ग़ज़ब, इन्हें राम की कोई रमणीयता न प्रिय, जाने निशाचर …
तुम नहीं हो साथ मेरे पर गिला कुछ भी नहीं - ग़ज़ल - दिलशेर 'दिल'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 2122 212 तुम नहीं हो साथ मेरे पर गिला कुछ भी नहीं, और जीने के लिए अब …
मैं तेरे हृदय का कान्हा हूँ - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
तू मेरे सपनों की राधा जैसी, मैं तेरे हृदय का कान्हा हूँ। तू मेरे दर्द की औषधी जैसी, मैं तेरे अश्कों का दीवाना हूँ। तू मधुवन की फूलों ज…
इन आँखों में कोई गिर्दाब है क्या - ग़ज़ल - साक़िब झांसवी
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन तक़ती : 1222 1222 122 इन आँखों में कोई गिर्दाब है क्या? मैं डूबूँगा तुम्हारा ख़्वाब है क्या? फ़क़त तुम ह…
ले चल रे! कहरवा पिया के नगरी - अवधी गीत - संजय राजभर 'समित'
कइसे चली डगरिया भर के गगरी। ले चल रे! कहरवा पिया के नगरी।। ओकरा से मोर शरधा बा लागल। दुनिया में लहँगा कई बार फाटल।। अबकी बार फटी त पिय…
सावन - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
सावन की बरखा में तन-मन झूम रहा है धरा को मानो आकाश बूँदों से चूम रहा है चिंताओं की चादर ओढ़े कृषक बैठा था बरखा की बूँदें देख अब नव…
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