इन आँखों में कोई गिर्दाब है क्या - ग़ज़ल - साक़िब झांसवी

अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 1222  1222  122

इन आँखों में कोई गिर्दाब है क्या?
मैं डूबूँगा तुम्हारा ख़्वाब है क्या?

फ़क़त तुम ही करोगे ज़ुल्म हम पर,
हमारा ख़ूँ कोई सरदाब है क्या?

लगाए पीठ पर जिसने ये ख़ंजर,
वो गर दुश्मन नहीं अहबाब है क्या?

झुका लीं उसने अपनी आज नज़रें,
हमारी बात उसे ईजाब है क्या?

ये आँखें भी नहीं खोली गईं हैं,
हसीं चेहरा बहुत ज़रताब है क्या?

साक़िब झांसवी - मुंबई (महाराष्ट्र)

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