तू मेरे सपनों की राधा जैसी,
मैं तेरे हृदय का कान्हा हूँ।
तू मेरे दर्द की औषधी जैसी,
मैं तेरे अश्कों का दीवाना हूँ।
तू मधुवन की फूलों जैसी,
मैं पवन देव का प्यारा हूँ।
तू वंशी की सुन्दर ध्वनि जैसी,
मैं सारे जग से न्यारा हूँ।
तू प्रेम राग की मूरती है,
मैं प्रीती पँवार से अंजाना हूँ।
तू मेरे सपनो की राधा जैसी,
मैं तेरे हृदय का कान्हा हूँ।
तू कदम्ब विटप की छाया जैसी,
मैं रवितनया का किनारा हूँ।
तू गोरी सुन्दर कलिमल जैसी,
मैं श्याम पथिक सा कारा हूँ।
तू देवलोक की सुरबाला जैसी,
मैं रत्नगर्भा का परवाना हूँ।
तू मेरे सपनों की राधा जैसी,
मैं तेरे हृदय का कान्हा हूँ।
चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)