शिव!
मैं कुछ तुम जैसी हूँ...
तुम भोले हो
मैं भोली हूँ
तुम ध्यानी हो
मैं तुम्हारे ध्यान में
ये सारा जग तुझमें बसता हैं और
तू मुझमें बसता हैं
तुम जग के रचयिता हो
मैं कविता में तुमको रचती हूँ
तुम जग कल्याण हेतु
अमृत बाँट
विष का प्याला पीते हो
मैं मौन आँखों से विष पीती हूँ
मुस्कान से अमृत बरसाती हूँ
शिव मैं कुछ तुम जैसी हूँ
तुम भोले हो
मैं भोली हूँ।
स्नेहा - अहमदनगर (महाराष्ट्र)