ओ मेरे प्रियतम मनभावन,
याद है मुझे वो पहला सावन।
वो भी क्या सावन के झूले थे,
जब साथ में, हम तुम झूले थे।
बस वो ख़ुशियों के मेले थे,
जब हम तुम, यूँ ना अकेले थे।
सावन की बरसीली रातों में,
हाथों को लिए हम हाथों में।
उन लंबी-लंबी रातों का,
कट जाना बातों बातों में।
अबकी "सावन" जो आया है,
साथ ना "उनको" लाया है।
इक छोटा सा पैग़ाम लिखा है,
प्रियतम जी! के नाम लिखा है।
ओ साजन! लौट तुम जल्दी आना,
उपहार संग, प्रीत भी अपनी लाना।
कोई उपहार भी चाहे ना लाना,
'वो' सावन की रीत! निभा जाना।
साजन! तुम जल्दी आ जाना।
साजन! तुम जल्दी आ जाना।।
संगीता भोई - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)