यादों की बारात सजाऊँ - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

यादों की बारात सजाऊँ,
बचपन फिर लम्हें जी पाऊँ।
माता की ममता छाया तल,
पा सुकून फिर से सो जाऊँ।

बाबूजी भय से सो जाऊँ,
किताब खोल स्वमन बहलाऊँ।
चलूँ पकड़ नित माँ का आँचल,
निर्भय होकर धूम मचाऊँ।

स्कूली जीवन अब कहँ पाऊँ,
खेलूँ कूदूँ शोर मचाऊँ।
बिन चिन्ता भविष्य निर्माणक,
मित्र बन्धु सह मस्ती गाऊँ।

जीवन के फिर सपने देखूँ,
गुलज़ार कॉलेज फिर से लौटूँ।
संघर्ष पथी रनिवासर ध्येयी,
पुनरपि आनंदित जीवन जीऊँ।

सपनों का सौदागर फिर से,
मंसूबे बारात सजाऊँ।
उथल पुथल यायावर अविरत,
फिर भी नव यौवन रास रचाऊँ।

चढ़ी सीढ़ियाँ तुंग शिखर पर,
किसे पतन निज कथा सुनाऊँ।
एक बार संकल्प मनसि ले,
फिर सीढ़ी चढ़ फ़तह कराऊँ।

भरूँ चिन्तना नई उमंगें,
ज़िंदादिल फिर से बन जाऊँ।
पैदल हो या निज वाहन चल,
अभिनव जीवन सैर कराऊँ।

जरा वयस में जोश भरूँ फिर,
नव यौवन मधुशाल बनाऊँ।
विजय लक्ष्य की भूख जलाकर,
नई राह आसान कराऊँ।

झटपट कार्य पूर्ण मन चाहत,
गुरुजन चरणों में शीश झुकाऊँ।
कर्मठता उन्मुक्त लक्ष्य पथ,
पुनः रौनक पथ बढ़ता जाऊँ।

कितना अच्छा लगता था वो,
अधिवक्ता मैं फिर हो जाऊँ।
अरमानों के स्मृति पटल पर,
यादों की बारात सजाऊँ।

एकाकी जीवन भुजंग सम,
जहाँ चाह वहाँ राह बनाऊँ।
क्या होली दीपाली उत्सव,
दुर्गा पूजा व ईद मनाऊँ।

फँसा मोह माया परिवारिक,
यादें बन केवल प्रेम जगाऊँ।
बन अतीत के दर्पण ख़ुद लखि,
यादें बारात बन दिल में छाऊँ।


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