ले चल रे! कहरवा पिया के नगरी - अवधी गीत - संजय राजभर 'समित'

कइसे चली डगरिया भर के गगरी।
ले चल रे! कहरवा पिया के नगरी।।

ओकरा से मोर शरधा बा लागल।
दुनिया में लहँगा कई बार फाटल।।

अबकी बार फटी त पिया के बखरी।
ले चल रे! कहरवा पिया के नगरी।।

चार दिन के चाँदनी हवे बजरिया।
फिर नाही लवके कऊनो डहरिया।।

नथिया मोर अबकी वहीं जे उतरी।
ले चल रे! कहरवा पिया के नगरी।।

जप तप ज्ञान यज्ञ हवे मोर गहना।
प्रेमवा के रस में मातल जोबना।।

पिया के सेजिया पे रस-रस निथरी।
ले चल रे! कहरवा पिया के नगरी।। 

करिके सिंगार ख़ूब करबय निहोरा।
दिन रात रहबय 'समित' जी के कोरा।।

अबकी नइया मोर भव पार उतरी।
ले चल रे! कहरवा पिया के नगरी।।

संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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