रक्षा बंधन - कविता - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'

रेशमी धागे से बना स्नेह का ये बंधन,
राखी है भ्रातृ भगिनी का पावन बंधन।

प्रेम पावित्रय का ये प्यारा सा सावन,
कच्चे धागे से भ्रातृ भगिनी का वंदन।

भगिनी लगाएँ रोली, अक्षत एवं चंदन,
प्रेम पुष्प, राखी से भ्रातृ का अभिनंदन।

प्राचीन काल से भ्रातृ प्रेम का बंधन,
हाँ स्वयं निभाए थे श्री देवकीनन्दन।

भ्रातृ भगिनी को भेंट करता है अर्पण,
वचन देता करेगा हर विपदा से रक्षण।

भ्रातृ भगिनी प्रेम का पवित्र ये बंधन,
सारे जग में कहलाए हाँ ये रक्षा बंधन।

हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल' - कोरबा (छत्तीसगढ़)

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