रक्षा बंधन - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव

भैया रेशम के धागे का
बंधन भूल न जाना,
रक्षाबंधन के दिन भैया
बहिन को नहीं भुलाना।

घर में रहकर बचपन में
हम कितनी धूम मचाते थे,
मेरी चोटी खींचकर भैया
तुम बाहर भग जाते थे।

अपनी ज़िद पूरी कराने
तुम हमको बहुत सताते थे,
छोटी-छोटी बातों पर तुम
अपना मुँह फुलाते थे।

झगड़ा करके मेरे खिलौने 
लेकर तुम छुप जाते थे,
पापा मम्मी के कहने पर
मुझको साथ खिलाते थे।

अपनी गुल्लक के पैसे से
टॉफ़ी तुम्हें खिलाते थे,
टॉफ़ी की उस मिठास को
भैया देखो भूल न जाना।

भैया रेशम के धागे का
बंधन भूल न जाना,
बहिन को घर बुलाकर भैया 
मायका याद दिलाना।

जब तक जीवन है भैया
तुम अपना फ़र्ज़ निभाना,
भाई बहिन के प्यार का
बंधन भैया भूल न जाना।
     
बचपन की इन यादों को
तुम फिर से याद दिलाना,
बहिन भाई के इस रिश्ते
को भैया भूल न जाना।

भाई बहिन के अमिट प्यार
का ये त्यौहार सुहाना,
रक्षाबंधन के दिन भैया
बहिन को भूल न जाना।

अखिलेश श्रीवास्तव - जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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