शिव हैं आदि शिव हैं अनंत वो हैं भोले भंडारी,
गले सर्प तन मृग छाला अविनाशी हैं डमरूधारी।
जटा विराजत गंगा और माथे शोभित अर्धचंदा,
गणप्रेतों के स्वामी हैं शिव जग कल्याणकारी।
कैलाशवासी गले वासुकी अर्धांगिनी हैं पार्वती,
भोलेनाथ हैं शिव वो सुनते सबकी विनती।
देवो के देव महादेव शंभू नाथ कहलाए नीलकंठ,
जग कल्याण किया गले धारण कर विष की पाती।
शिव शक्ति हैं शिव पूजा शिव हैं ओमकार ध्वनि,
जीवन उद्धार उसका जिसपर शिव की कृपा बनी।
भंगधतूरे से हो जाते प्रसन्न अनंत शिव की महिमा,
शिव से जुड़े नाता जीवन में मिले ख़ुशियों की मणि।
अर्धनारीश्वर, जटाधारी वो विश्वेश्वर हैं कण-कण में,
शिव को न ढूँढ़ो इधर उधर वो विराजे सबके मन में।
औघड़ हैं, अविनाशी हैं महेश्वर ही सृजन और संहार,
अदृश्य हैं वो साकार भी शिव जीवन के हर क्षण में।।
शालिनी तिवारी - अहमदनगर (महाराष्ट्र)