वर्षा सुन्दरी - कविता - अनिल भूषण मिश्र

एक नार नवेली अलवेली,
करके स्नान अभी-अभी वो आई है।
रूप सौन्दर्य की छटा बिखेरती,
सबके मन भाई है।
घने केश काले उसके,
नयन कजरारे हैं।
बिजली सी वह चमक रही है,
तन करते उजियारे हैं।
होंठ रसीले नयन कटीले,
कमर बलखाती है।
मतवाली चाल है उसकी,
छम-छम पायल गाती है।
ख़ुशबु से उसके संसार महकता है,
रँग-बिरंगे फूलों का रूप निखरता है।
खड़ी हुई वह आँगन में,
बालों की लट लहराती है।
बूँद-बूँद कर टपके मोती,
प्रेमी जन की चाह बढ़ाती है।
स्वागत में उसके भूषण,
सब पलक बिछाए हैं।
धन्य भाग्य जिसके आँगन,
क़दम उसके आए हैं।

अनिल भूषण मिश्र - प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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