तुम नहीं हो साथ मेरे पर गिला कुछ भी नहीं - ग़ज़ल - दिलशेर 'दिल'

अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती : 2122  2122  2122  212

तुम नहीं हो साथ मेरे पर गिला कुछ भी नहीं,
और जीने के लिए अब आसरा कुछ भी नहीं।

ठोकरें ही खाईं हमने पर मिला कुछ भी नहीं,
उम्र ढलने से बड़ी अब तो सज़ा कुछ भी नहीं।

वो हमारी राह में काँटे बिछा कर चल दिए,
जिनको फूलों के सिवा हमने दिया कुछ भी नहीं।

जा रहे हो तुम जो मेरे पास से तो जाओ फिर,
अब तुम्हारे वास्ते मुझ में रहा कुछ भी नहीं।

उसने गिन-गिन के बताईं सब हमारी ग़लतियाँ,
हम समझते थे हमारी है ख़ता कुछ भी नहीं।

उम्र भर ही हम सफ़र में मुब्तिला कुछ यूँ रहे,
रात दिन के दरमियाँ अब फ़ासला कुछ भी नहीं।

कोई पी के ज़हर है बैठा कोई अमृत पा गया,
कौन कहता है समुंदर से मिला कुछ भी नहीं।

जिस गली में घर तुम्हारा गुज़रे कल की बात हो,
उस गली से अब हमारा वास्ता कुछ भी नहीं।

दिलशेर 'दिल' - दतिया (मध्य प्रदेश)

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