संदेश
लगता प्यारा ये चाँद है - कविता - डॉ॰ राजेश पुरोहित
आसमान का मोती चाँद है, रजत सा चमके देखो चाँद है। परछाई पानी मे दिखे तो, लगता प्यारा ये चाँद है। नीलगगन में चाँद है प्यारा, संग सितारे …
ग़ुस्सा है या प्यार आपका - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
ग़ुस्सा है या प्यार आपका, चुप क्यों है इज़हार आपका। बहुत दिनों से उलझाए है, अनजाना व्यवहार आपका। रहता है दिल की आँखों में, भोला सा रुख़सा…
सूखा पत्ता हूँ उपवन का - कविता - डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
इंतज़ार मैं करता रहता, सुबह, दोपहर और शाम। अब नही कोई चिट्ठी आती और ना आता पैग़ाम।। कोई याद ना करता मुझको, और ना कोई फ़ोन करे। सूखा पत्त…
तेरे ख़्वाबों के सहारे - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
तेरे ख़्वाबों के सहारे, चलती कश्ती ये किनारे, ऊपर से दरिया का पानी बेहिसाब। अब तो मंज़िल तुझको पाना, तेरी चाहत में खो जाना, अफ़साना कहती …
प्रातः पूस की - कविता - अनूप मिश्रा 'अनुभव'
पूष की प्रातः आभा को, ढक दी श्यामल मेघ की चादर। खेल रहे रजनी संग जैसे, आँख मिचोली खेल प्रभाकर। संध्या की सारी को पहने, डाले भोर भरम …
नाक - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
नाक छोटी होना नाक बड़ी होना नाक ऊँची होना नाक नीची होना नाक बचाने के चक्कर में क्या क्या खेल खिलाए। नाक ही तो है जो बात बात में टाँग अ…
जिस-जिस पे यह जग हँसता है - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 जिस-जिस पे यह जग हँसता है, सचमुच वो आगे बढ़ता है। अपनी दुनिया में जो खोया, व…
बुद्ध सा - कविता - श्रीलाल जे॰ एच॰ आलोरिया
मिट जाएँ सब राग द्वेष और विकार विरत हो जाऊँ, तब, सच मानो मैं बुद्ध सा हो जाऊँ। ना रखूँ नफ़रत किसी से ना वैर किसी से कर पाउँ, पंचशील …
माँ - कविता - ब्रजेश
माँ प्यार है, दुलार है, ममता की फुहार है। माँ सहेली है, मित्र है, माँ का प्रेम सबसे पवित्र है। माँ लोरी है, छंद है, संगीत है, बच्चे की…
जीवन - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
सूरज के रास्ते में चाँद भी आता है, हर सुबह का पथ अंधकार भी पाता है। क्यों देखते हो जीवन, हर दर्द से दूर कभी कभी दर्द किलकारी के काम आत…
हिमालय की गोद में - कविता - राम प्रसाद आर्य
बरफ़ रजाई ओढे, ये परवत जाल है। धूप की तपन फेल, आग की अगन फेल, बरफ़ी बयारों में भी अजब उबाल है।। बरफ़ पडे़ फर-फर, तन कंपे थर-थर, बरफ़ी बा…
गाँव की औरतें - कविता - यश वट
गाँव की औरतें नहीं लगाती सनस्क्रीन, वे पायल, बाली, काँटा, नथनी, बिंदी, क्लिनिक प्लस और थोड़ा सा पाउडर लगा, लड़ लेती है धूप से यूँ ही, …
अभी समय है शेष तुम्हारा - कविता - राघवेंद्र सिंह
अभी समय है शेष तुम्हारा त्यागो निद्रा जग जाओ। लक्ष्य को करके निर्धारित एक दिशा चुनो और लग जाओ। हार मिले या जीत मिले जीवन में कभी तुम …
शव जीवित हैं - कविता - गणेश भारद्वाज
दाएँ-बाएँ, पीछे-आगे, स्वार्थ हित सब भागे-भागे। इस दुनियाँ में चलते-फिरते, आते-जाते हमसे मिलते। अपने हित में पाले ढब हैं, सच पूछो तो सा…
हे मानव! जागो - कविता - मुकेश साहू
उषा के किरण का पृथ्वी पर पड़ते ही छोटे-छोटे चिड़ियों का चहचहाना मानों कह रही हो, "भोर हो गई"। हे मानव! जागो, अपना कर्म करो, …
काश! हर शख़्स अदब सीख जाए - ग़ज़ल - श्याम निर्मोही
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा तक़ती : 212 212 212 2 काश! हर शख़्स अदब सीख जाए, नया ख़ून, जीने का ढब सीख जाए। किसी दिन लाओ बच्चों को…
ग़ुरूर - कविता - प्रतिभा नायक
किस बात पर ग़ुरूर करेगा ये सूरज, नदी, तालाबों को सुखाने वाला, मज़दूर के पसीने को सुखा न पाया, किसी के आँसुओं को पोंछ न पाया। चाँद को फ़…
आपका दुश्मन कौन? - लघुकथा - गोपाल मोहन मिश्र
एक बहुत बड़ी कंपनी के कर्मचारी लंच टाइम में जब वापस लौटे, तो उन्होंने नोटिस बोर्ड पर एक सूचना देखी। उसमें लिखा था कि कल उनका एक साथी ग…
ज़िंदा हो तो नज़र आओ - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
ज़िंदा हो? ज़िंदा हो! तो नज़र आओ। आँखें चार करो नज़र मिलाओ, ज़िंदा हो? ज़िंदा हो! तो नज़र आओ। बचपन के संग खिलखिलाना, बूढ़ों का दर्द बन जाना…
ये फूल - कविता - मनोरंजन भारती
चाँद की चाँदनी को तुम, अपने आग़ोश में रखती हो, सुरज की पहली किरण संग, समेटे पंखुड़ियाँ खोलती हो। लेकीन एक कसक हमेशा रहेगा, जी भर बातें क…
मकर संक्रांति अर्थात शुभकारी परिवर्तन - लेख - सोनल ओमर
भारत वर्ष को संस्कृतियों एवं त्यौहारों का देश माना जाता है। ऐसे ही भारत का एक विशेष त्यौहार मकर संक्रांति है। संक्रांति का अर्थ है सुक…
मकर संक्रांति है सुख व समृद्धि पर्व - कविता - गणपत लाल उदय
लो आया नव-वर्ष का पहला त्योहार, संक्रांति पर्व लाया है ख़ुशियाँ अपार। हल्की-हल्की चल रही ये ठंडी हवाएँ, हमारी तरफ़ से अनेंक शुभकामनाएँ।…
मकर संक्रांति - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता'
आया मकर संक्रांति का त्योहार, लाया सुख-समृद्धियों का उपहार। जीवन पतंग उच्च शिखर में उड़ती जाए, अपनों के प्रति डोर विश्वास की बढ़ती जाए। …
मकर संक्रांति - कविता - रतन कुमार अगरवाला
आया मकर संक्रांति का पावन उत्सव, सूर्यदेव हुए उत्तरायन, करते सूर्य की अर्चना इस दिन, और माँ गंगा में करते स्नान। करते हैं सूर्य देव को…
पतंगे - कविता - रमाकांत सोनी
नील गगन में उड़े पतंगे लहराती बलखाती सी, रंग-बिरंगी सुंदर-सुंदर अठखेलियाँ दिखाती सी। वो डोर से बँधी हुई आसमान छू पाती है, हर्ष उमंग …