तेरे ख़्वाबों के सहारे - कविता - धीरेन्द्र पांचाल

तेरे ख़्वाबों के सहारे,
चलती कश्ती ये किनारे,
ऊपर से दरिया का पानी बेहिसाब।
अब तो मंज़िल तुझको पाना,
तेरी चाहत में खो जाना,
अफ़साना कहती है दिल की ये किताब।
तेरे ख़्वाबों के सहारे,
चलती कश्ती ये किनारे,
ऊपर से दरिया का पानी बेहिसाब।

तेरा रूठना और मनाना,
कर देगा मुझको मनमाना,
जुगनू बन लूटेंगे हम भी आफ़ताब।
शाकी बन समझाने आजा,
दिल का दर्द मिटाने आजा।
झड़ते मोती आँखों के देखे एक ख़्वाब।
तेरे ख़्वाबों के सहारे,
चलती कश्ती ये किनारे,
ऊपर से दरिया का पानी बेहिसाब।

तेरी यादों से दिन कटते,
हम भी मस्त मगन हैं रहते,
जाएँगे भी तो हम जाएँगे कहाँ।
तू ही राही तू ही मंज़िल,
तेरी आँखे जैसे ऊर्मिल,
इनमें डूबे तो पाएँगे आसमाँ।
तेरे ख़्वाबों के सहारे,
चलती कश्ती ये किनारे,
ऊपर से दरिया का पानी बेहिसाब।

धीरेंद्र पांचाल - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos