बुद्ध सा - कविता - श्रीलाल जे॰ एच॰ आलोरिया

मिट जाएँ सब राग द्वेष 
और विकार विरत हो जाऊँ,
तब, सच मानो मैं बुद्ध सा हो जाऊँ।
 
ना रखूँ नफ़रत किसी से
ना वैर किसी से कर पाउँ,
पंचशील के पाँचों शील 
ध्यान से जो अपनाऊँ,
तब, सच मानो मैं बुद्ध सा हो जाऊँ।

सम्यक कर्म से बनाकर जीवन सफल
सम्यक वाणी को अपनाऊँ,
सम्यक दृष्टि रखूँ हर जीव पर
सम्यक वचन को अपनाऊँ,
तब, सच मानो मैं बुद्ध सा हो जाऊँ।

सम्यक संकल्प लूँ बुद्ध से
बाबा के सपनों को पूरा जो कर पाऊँ,
सम्यक स्मृति से करूँ मानव की सेवा
धन्य जीवन अपना पाऊँ,
तब, सच मानो मैं बुद्ध सा हो जाऊँ।

श्रीलाल जे॰ एच॰ आलोरिया - दिल्ली

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