सम्पादकीय


● सैयद इंतज़ार अहमद

दिनांक : 27 अप्रैल 2021

आज हर तरफ निराशा व्याप्त है, हर चेहरे पर भय और तनाव झलक रहा है। समाज का कुछ वर्ग तो इतना टूट चुका है कि फिर से खड़े होने की हिम्मत भी खो बैठा है। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो घोर असमंजस की स्थिति में जी रहे हैं। सबके सामने एक ही सवाल है कि कल क्या होगा? अभिभावक अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए चिंतित है, तो कामगार अपनी कमाई के लिए चिंतित है। पिछले वर्ष की दुःखद स्मृति को ज़ेहन से निकाल पाना मुश्किल था ही कि वर्तमान वर्ष भी अनगिनत अनिश्चितताओं को सामने लेकर खड़ा हो गया। वर्तमान स्तिथि को लेकर हर वर्ग अपने-अपने विचार व्यक्त कर रहा है। एक तरफ़ इसे आपदा माना जा रहा है तो जमाखोरों के लिए अवसर से कम भी नहीं लग रहा है।

● समुन्द्र सिंह पंवार

दिनांक : 2 मई 2021

प्यारे पाठकों,
आज मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। आज हम एक कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। हमारे कई परिचित परिवारों में परेशानी चल रही है। मेरा आप सभी से सविनय निवेदन है कि कोरोना महामारी के इस दौर में चाहे दूर बैठे ही सही जहाँ तक संभव हो सके हम एक दूसरे का हालचाल पूछते रहें, एक दूसरे का सहयोग करते रहें। अपनी तक़लीफ़ और आवश्कता बेझिझक एक दूसरे से साझा करें।

दिनांक : 27 अप्रैल 2021

लॉकडाउन की ख़बर सुनते ही शराब की दुकानों पर टूट पड़ते हैं, दो रुपये का नींबू दस रुपये में बेचने लगते हैं। 
तीस रुपए का प्याज सौ रुपये में बेचने लगते हैं। पच्चीस का परवल अस्सी में बेचने लगते हैं। मरीज़ों के लिए ऑक्सीजन की कमी सुनते हैं तो ऑक्सीजन की कालाबाज़ारी शुरू कर देते हैं।