पतंगे - कविता - रमाकांत सोनी

नील गगन में उड़े पतंगे
लहराती बलखाती सी,
रंग-बिरंगी सुंदर-सुंदर 
अठखेलियाँ दिखाती सी।

वो डोर से बँधी हुई 
आसमान छू पाती है,
हर्ष उमंग उल्लास भर 
अंबर मे छा जाती है।

पतंगों का महापर्व यह
सब में जोश जगाता है,
माटी से जुड़े रहने का 
पावन संदेश फैलाता है।

दान दया पुण्य दिवस 
मकर संक्रांति आया,
शुभ भाव उर में जागे 
आरोग्य सुख समाया।

ऊँची सोच स्वप्न सुनहरे 
भरकर ऊँची उड़ान,
सत्कर्म सुपथ चलकर 
पाओ जीवन में शान।

रमाकान्त सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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