झलकारी बाई - कविता - रमाकान्त चौधरी

वो झाँसी की सैनानी। 
जिसने हार कभी न मानी।

निडर और साहसी नारी। 
नाम था उसका झलकारी। 
पल में धूल चटाई उसको, 
जिसने समझा उसे अनाड़ी। 
बात ज़रा है पुरानी। 
वो झाँसी की सैनानी। 
जिसने हार कभी न मानी।

थी मूलचंद की बेटी,
पूरन के संग ब्याह हुआ। 
दुर्गा दल की सेनापति थी, 
लक्ष्मीबाई सा रूप मिला। 
थी झाँसी की दीवानी। 
वो झाँसी की सैनानी। 
जिसने हार कभी न मानी।

लड़ी बाघ संग बचपन में, 
मार कुल्हाड़ी काट दिया। 
जो उसकाे खाने आया था, 
उसे टुकडों में बाँट दिया। 
वह तनिक नहीं घबरानी। 
वो झाँसी की सैनानी। 
जिसने हार कभी न मानी।

जब अंग्रेजों ने झाँसी घेरी, 
थी रानी पे मुसीबत आई। 
रानी को किया सुरक्षित था, 
थी ख़ुद रानी बन आई। 
वह थी बड़ी सयानी। 
वो झाँसी की सैनानी। 
जिसने हार कभी न मानी।

उसका साहस देखा जब, 
था ह्यूरोज बहुत घबराया। 
रण में लड़ी, शहीद हुई, 
था अपना कर्तव्य निभाया। 
उसकी कीमत किसने जानी? 
ख़ूब लड़ी मर्दानी। 
जिसने हार कभी न मानी। 

रमाकांत चौधरी - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

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