रमाकांत चौधरी - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)
झलकारी बाई - कविता - रमाकान्त चौधरी
सोमवार, नवंबर 22, 2021
वो झाँसी की सैनानी।
जिसने हार कभी न मानी।
निडर और साहसी नारी।
नाम था उसका झलकारी।
पल में धूल चटाई उसको,
जिसने समझा उसे अनाड़ी।
बात ज़रा है पुरानी।
वो झाँसी की सैनानी।
जिसने हार कभी न मानी।
थी मूलचंद की बेटी,
पूरन के संग ब्याह हुआ।
दुर्गा दल की सेनापति थी,
लक्ष्मीबाई सा रूप मिला।
थी झाँसी की दीवानी।
वो झाँसी की सैनानी।
जिसने हार कभी न मानी।
लड़ी बाघ संग बचपन में,
मार कुल्हाड़ी काट दिया।
जो उसकाे खाने आया था,
उसे टुकडों में बाँट दिया।
वह तनिक नहीं घबरानी।
वो झाँसी की सैनानी।
जिसने हार कभी न मानी।
जब अंग्रेजों ने झाँसी घेरी,
थी रानी पे मुसीबत आई।
रानी को किया सुरक्षित था,
थी ख़ुद रानी बन आई।
वह थी बड़ी सयानी।
वो झाँसी की सैनानी।
जिसने हार कभी न मानी।
उसका साहस देखा जब,
था ह्यूरोज बहुत घबराया।
रण में लड़ी, शहीद हुई,
था अपना कर्तव्य निभाया।
उसकी कीमत किसने जानी?
ख़ूब लड़ी मर्दानी।
जिसने हार कभी न मानी।
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