आपका दुश्मन कौन? - लघुकथा - गोपाल मोहन मिश्र

एक बहुत बड़ी कंपनी के कर्मचारी लंच टाइम में जब वापस लौटे, तो उन्होंने नोटिस बोर्ड पर एक सूचना देखी। उसमें लिखा था कि कल उनका एक साथी गुज़र गया, जो उनकी तरक़्क़ी को रोक रहा था। कर्मचारियों को उसको श्रद्धांजलि देने के लिए बुलाया गया था।

श्रद्धांजलि सभा कंपनी के मीटिंग हॉल में रखी गई थी। पहले तो लोगों को यह जानकर दुःख हुआ कि उनका एक साथी नहीं रहा, फिर वो उत्सुकता से सोचने लगे कि यह कौन हो सकता है? धीरे-धीरे कर्मचारी हॉल में जमा होने लगे। सभी होंठो पर एक ही सवाल था! आख़िर वह कौन है, जो हमारी तरक़्क़ी की राह में बाधा बन रहा था।

हॉल में दरी बिछी थी और दीवार से कुछ पहले एक परदा लगा हुआ था। वहाँ एक और सूचना लगी थी कि गुज़रने वाले व्यक्ति की तस्वीर परदे के पीछे दीवार पर लगी है। सभी एक-एक करके परदे के पीछे जाएँ, उसे श्रद्धांजलि दें और फिर तरक्की की राह में अपने कदम बढ़ाएँ, क्योंकि उनकी राह रोकने वाला अब चला गया। कर्मचारियों के चेहरे पर हैरानी के भाव थे। कर्मचारी एक-एक करके परदे के पीछे जाते और जब वे दीवार पर टंगी तस्वीर देखते, तो अवाक् हो जाते। दरअसल, दीवार पर तस्वीर की जगह एक आइना टंगा था। उसके नीचे एक पर्ची लगी थी, जिसमें लिखा था "दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति है, जो आपकी तरक़्क़ी को रोक सकता है, आपको सीमाओं में बाँध सकता है। और वह आप ख़ुद हैं।
अपने नकारात्मक हिस्से को श्रद्धांजलि दे चुके नए साथियों का स्वागत है"।

गोपाल मोहन मिश्र - लहेरिया सराय, दरभंगा (बिहार)

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