मकर संक्रांति अर्थात शुभकारी परिवर्तन - लेख - सोनल ओमर

भारत वर्ष को संस्कृतियों एवं त्यौहारों का देश माना जाता है। ऐसे ही भारत का एक विशेष त्यौहार मकर संक्रांति है। संक्रांति का अर्थ है सुक्रांती अर्थात शुभकारी परिवर्तन। सूर्य मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर चढ़ने लगता है। इस प्रकृति दत्त अवसर को मकर संक्रांति कहते है। मकर संक्रांति में सूर्य उत्तरयण में चले जाते है, इसके पूर्व दक्षिणायण में रहते है। सूर्य के दक्षिणायण में रहने के कारण दिन छोटे व राते बड़ी होती है, जबकि उत्तरायण में स्थित हो जाने पर दिन बड़े व राते छोटी होती है। मकर संक्रांति को स्नान और दान का विशेष महत्व है साथ ही तिल, गुड़, खिचड़ी, फल एवं राशि अनुसार दान करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन किए गए दान से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं।

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस विशेष दिन पर भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते है, उस समय भगवान् शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते है। पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने के लिए, मतभेदों के बावजूद, मकर संक्रांति को महत्व दिया गया। ऐसा माना जाता है कि इस विशेष दिन पर जब कोई पिता अपने पुत्र से मिलने जाते है तो उनके संघर्ष हल हो जाते हैं और सकारात्मकता ख़ुशी और समृधि के साथ साझा हो जाती है। इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है, जो भीष्म पितामह के जीवन से जुडी हुई है, जिन्हें यह वरदान मिला था, कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी। जब वे बाणों की सज्जा पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी आँखें बंद की और इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति हुई।

यह पर्व देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है और इसी ख़ूबी के कारण मकर संक्रांति का पर्व अन्य सभी त्योहारों से अलग व विशिष्ट बन जाता है। तो चलिए जानते हैं देश के विभिन्न हिस्सों में किस तरह सेलिब्रेट किया जाता है यह पर्व। पंजाब में इसे लोहड़ी के नाम से पुकारते है, जिसमे लकड़ियों व उपलों की आग बना कर उसके चारों ओर फेरी लगा कर नाचते गाते है और तिल रेवड़ी इत्यादि चढ़ाते है। वहीं तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश में पोंगल नाम से इसे मनाया जाता है। जहाँ पर लोग पोंगल मनाने के लिए सबसे पहले स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहा जाता है। इसके बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है और अंत में उसी खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। वहीं गुजरात में उत्तरायण के नाम से जाना जाता है मकर संक्रांति का पर्व। गुजरात में इस दिन पतंग उड़ाने की प्रथा है। इतना ही नहीं, गुजरात में मकर संक्रांति के पर्व पर पंतगोत्सव का भी आयेाजन किया जाता है। गुजराती लोगों के लिए यह एक बेहद शुभ दिन है और इसलिए किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत के लिए इसे सबसे उचित दिन माना जाता है। असम में मकर संक्रांति को बिहू नाम से मनाते है। तो वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी के नाम से पुकारा जाता है। उत्तरप्रदेश में मकर संक्रांति के दिन को दान के पर्व के रूप में देखा जाता है। इलाहाबाद में तो मकर संक्रांति के दिन से ही माघ मेले की शुरूआत होती है और माघ मेले का पहला नहान मकर संक्रांति के दिन ही किया जाता है। इस खास दिन लोग स्नान के अतिरिक्त दान को भी महत्ता देते हैं। जिसमें खिचड़ी को मुख्य रूप से शामिल किया जाता है। इतना ही नहीं, लोग खिचड़ी को दान करने के साथ-साथ उसका सेवन भी अवश्य करते हैं।

भारत के अलावा मकर संक्रांति दूसरे देशों में भी प्रचलित है लेकिन वहाँ भी इसे अलग-अलग नाम से ही जाना जाता है। जैसे नेपाल में इसे माघे संक्रांति कहते है। नेपाल के ही कुछ हिस्सों में इसे मगही नाम से भी जाना जाता है। थाईलैंड में इसे सोंग्क्रण नाम से मनाते है। म्यांमार में थिन्ज्ञान नाम से जानते है। कंबोडिया में मोहा संग्क्रण नाम से मनाते है। श्री लंका में उलावर थिरुनाल नाम से जानते है। भले विश्व में मकर संक्रांति अलग-अलग नाम से मनाते है लेकिन इसके पीछे छुपी भावना सबकी एक है वो है शांति और अमन की, आस्था की। सभी इसे अँधेरे से रोशनी के पर्व के रूप में मनाते है।

सोनल ओमर - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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