मकर संक्रांति है सुख व समृद्धि पर्व - कविता - गणपत लाल उदय

लो आया नव-वर्ष का पहला त्योहार, 
संक्रांति पर्व लाया है ख़ुशियाँ अपार।
हल्की-हल्की चल रही ये ठंडी हवाएँ,
हमारी तरफ़ से अनेंक शुभकामनाएँ।। 

सुबह-सवेरे बाजरे की खिचड़ी बनाते,
तिलपट्टी व गुड़ के लड्डू सभी खाते।
गली और मोहल्लों में हम धूम मचाते,
छत पर चढ़कर यह पतंग हम उड़ाते।। 

तिल के लडडू तो कोई गजक बनातें,
कोई मूँगफली और कोई रेवडी़ लाते।
कोई करते दान धर्म कोई करते पूजा,
सारे भारत में इस दिन उत्सव मनातें।।

त्योहार है ये एक लेकिन नाम अनेक,
तमिलनाडु में पोंगल लोहड़ी पंजाब।
असम में मनाते है माघ-बिहू के नाम, 
गुजरात में मनाते उत्तरायण ये ख़ास।।

सूर्य नारायण की पूजा करते है सभी,
मिट्टी के बर्तनों में खीर बनातें मीठी।
सुहागिन महिलाओं का ख़ास ये पर्व,
मकर संक्रांति है सुख व समृद्धि पर्व।।

गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)

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