मकर संक्रांति - कविता - रतन कुमार अगरवाला

आया मकर संक्रांति का पावन उत्सव, सूर्यदेव हुए उत्तरायन,
करते सूर्य की अर्चना इस दिन, और माँ गंगा में करते स्नान।
करते हैं सूर्य देव को जल अर्पण, और ग़रीबों को देतें दान,
मनातें हैं पुरे राष्ट्र में मकर संक्रांति, अलग-अलग हैं नाम।

धनु राशि से निकल कर सूर्य, करता मकर राशि में प्रवेश,
दक्षिणायन से सूर्य हो जाता उत्तरायन, देता शुभ सन्देश।
फ़सलों की हो जाती कटाई, नई ऋतु के खुलते द्वार,
सर्दियों की विदाई शुरू हो जाती, आने लगती बसंत बहार।

उत्तर-पश्चिम भारत में मनातें, लोहरी का पावन त्यौहार,
तमिलनाडु में मनाते पोंगल, छा जाती आसमान में पतंगों की बहार।
थारु समुदाय में कहते 'माघी', खाते हैं कंद-मूल, तिल और घी,
तीर्थंस्थल में करते स्नान, और देते है दान धर्म आदि।

अच्छी फ़सल के लिए किसान, देते हैं भगवान को धन्यवाद,
अनुकम्पा यूँ हीं बनी रहे सदा, यही माँगते आशीर्वाद।
उत्तर प्रदेश में भी मनातें इसे, नाम इसका 'खिचड़ी', 
दाल चावल मिलाकर पकाते, खाते बनाकर खिचड़ी।

असम प्रदेश में मनाते 'भोगाली बिहू', मैदान में जलाते 'मेजी' सब मिलकर,
खाते सब दही, चीड़वा, लड्डू और पीठा, गाते बिहू गान नाच घूम कर।
बड़े बूढ़े पहनते धोती कुरता, औरतें पहनती मेखला चादर,
करते बड़ो को प्रणाम, एक दूजे का करते आदर।

विश्व के भिन्न प्रांतों में मनातें संक्रांति, है इस के अलग-अलग नाम,
वसंत का होता आग़ाज़, मनाता पूरा विश्व इसे धूमधाम।
श्रीलंका, कम्बोडिया, म्यांमार, थाईलैंड और बांग्लादेश,
मनातें अलग-अलग नाम से, लोग पहनते नई भूषा और वेश।

आओ हम सब मिलकर मनाएँ लोहरी, खाए तिल की पपड़ी,
छत पर बैठकर सब एक संग, खालें दाल चावल की खिचड़ी।
मुंडेर पर चढ़कर उड़ाएँ पतंग, मस्ती करें परिवार के संग,
पतंगे लहराएँगी आसमान में, करेंगी ठिठोली एक दूजे के संग।

भगवान सूर्य की करें अर्चना, गंगा जल में करलें स्नान,
नया एक संकल्प करें मन में, अच्छाईयों का कर लें ध्यान।
भाईचारे का सन्देश फैलाकर, दें सन्देश प्रीत का सब को,
स्वागत करें नई सुबह का, करें शत्-शत् नमन रब को।

रतन कुमार अगरवाला - गुवाहाटी (असम)

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