जीवन - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया

सूरज के रास्ते में
चाँद भी आता है,
हर सुबह का पथ
अंधकार भी पाता है।
क्यों देखते हो जीवन,
हर दर्द से दूर
कभी कभी दर्द
किलकारी के काम आता है।
इस दुनिया में कुछ भी
तभी पूरा है जब उसका
एक हिस्सा अधूरा है।
कितनी भी कोशिश कर लो
रात के साथ उजाला होगा,
सुबह के साथ शाम होगी,
सुख के साथ दुख होगा
काले के साथ सफेद होगा,
चूहा होगा तो बिल्ली होगी,
धरती होगी तो आकाश भी होगा,
फिर सब जानकर भी
तुम क्यों रो रहे हो?
किसलिए इतना हताश और, 
निराश हो रहे हो,
सिर्फ़ संयम ही से हर पल
चलते जाना है,
एक बार फिर जो तुम,
चाहते हो उसे पाना है।
तुमने जब से अधूरेपन को ही
पूरा जीवन मान लिया है,
इसीलिए दुख, अवसाद, निराशा,
अकेलापन ज्यादा जान लिया है।
थोड़ा उस पार भी देखने की
आदत आलोक डाल लो,
जीवन सुंदर था है
यह सच भी मान लो।

डॉ॰ आलोक चांटिया - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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